केरल में नहीं मिलेगी शराब, आखिर क्यों सरकार ने बदला फैसला?
आखिरकार भारी विरोध के बाद केरल सरकार को लॉकडाउन के दौरान शराब बिक्री का अजीबोगरीब फैसला वापस लेना ही पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देशभर में 21 दिन की तालाबंदी की घोषणा और कांग्रेस, यूडीएफ और भाजपा की आलोचना के बाद केरल में वाम मोर्चा सरकार ने लॉकडाउन के दौरान शराब ने बेचने का फैसला किया है। सभी नियम सभी 14 जिलों के राज्य पेय पदार्थ निगम के 265 शराब दुकानों पर लागू होगा। राज्य सरकार ने पहले कसारगोड में शराब के आउटलेट बंद किए थे, जो कोरोनो वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित था।


सामाजिक परेशानियों का दिया था हवाला


इसके पहले केरल के सीएम पिनराई विजयन ने शराब को 'आवश्यक' वस्तुओं की श्रेणी में रखा था। भयंकर महामारी के दौर में शराब की बिक्री को सही ठहराते हुए विजयन ने पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के एक कथित ट्वीट का हवाल दिया था। विजयन ने कहा था, 'शराब की दुकानें खुली रहेंगी। जब सरकार ने शराब की बिक्री रोक दी थी तो हमें कुछ बुरे अनुभवों से गुजरना पड़ा था, इससे कई सामाजिक परेशानियां पैदा होंगी और ऐसे नाजुक मौके पर सरकार किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठा सकती' इससे पहले राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें किराने का सामान, ताजे फल, सब्जियां, पीने के पानी और चारे के साथ छूट की सूची में शराब भी शामिल था।


लॉकडाउन में शराब खरीदने जुटी थी भीड़


केरल में लगातार सामने आ रहे कोरोना पॉजिटिव केस को देखते हुए राज्य सरकार ने काफी पहले ही लॉकडाउन का एलान कर दिया था। बावजूद इसके मंगलवार (24 मार्च) को राज्य बेवरेज निगम की दुकानों के आगे लंबी-लंबी कतारें लगी रही। कर्फ्यू से बेपरवाह लोग दुकानों के आगे इकट्ठा हुए। अधिकारियों ने संक्रमण की रोकथाम के लिए एक मीटर की दूरी पर खड़े होने को कहा था। लोग मास्क लगाकर शराब खरीदने पहुंचे थे। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना था कि अगर सरकार केरल उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश को लागू करती तो दुकानों के सामने इतनी लंबी कतारें नहीं लगती और ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती।

कुल राजस्व का 15 प्रतिशत 

केरल में कुल 598 बार, 357 बीयर पार्लर और 301 शराब की दुकानों में से, केरल स्टेट ब्रेवरेज कॉरपोरेशन (BEVCO) के पास 265 दुकान हैं, जबकि कंज्यूमरफेड शेष 36 दुकानों का मालिक है। 3500 ताड़ी की दुकाने हैं। केरल के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शराब की बिक्री से आता है। शराब पर ड्यूटी से राज्य को सालाना लगभग 2,500 करोड़ रुपये का मुनाफा होता है, जो उसके कुल राजस्व का 15 प्रतिशत है। शायद यही वजह है कि कोरोना के प्रकोप के बावजूद सरकार शराब की बिक्री बंद करने के मूड में नहीं थी। एक रिपोर्ट की माने तो 2018-19 के दौरान केरल में शराब की बिक्री का कुल वार्षिक कारोबार 14,504 करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर पहुंच गया और राज्य के उत्पाद शुल्क से सरकार का राजस्व 2,521 करोड़ रुपये हो गया।

शराब बेचने की वजह राजस्व या कुछ और?


दरअसल, COVID-19 के प्रकोप के कारण व्यवसायों, निजी फर्मों और व्यापारियों को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में नकली शराब का प्रवाह और नशे की लत का भावनात्मक प्रभाव को भी पूर्णत: नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। केरल में अवैध शराब की खपत से प्रेरित त्रासदियों का इतिहास है, एर्नाकुलम जिले के वाइपेन में 70 लोगों की मौत, बड़े पैमाने पर त्रासदी की गवाह है। राज्य में विमुद्रीकरण की कवायद, जीएसटी के कार्यान्वयन के साथ-साथ भयंकर बाढ़ के बाद आर्थिक राहत के लिए रिलिज किए गए फंड से राज्य का कोष भी कुछ खासा अच्छा नहीं ऐसे में निश्चित तौर पर राज्य सरकार की नजर उस राजस्व पर थी, जो विशेष रूप से शराब की बिक्री से उत्पन्न होती है।